BA Semester-1 Sanskrit - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 संस्कृत - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 संस्कृत

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2632
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 संस्कृत

प्रश्न- महाकवि कालिदास के पश्चात् होने वाले संस्कृत काव्य के विकास की विवेचना कीजिए।

अधवा
'कालिदासोत्तरकाल में संस्कृत काव्य के विकास' को सविस्तार समझाइये।

उत्तर-

कालिदासोत्तरकाल में संस्कृत काव्य का विकास

संस्कृत काव्य की सरस, सरल, सहज, रमणीय एवं सुकुमार शैली का चरम उत्कर्ष कालिदास की काव्यकला में प्राप्त होता है। डॉ. राजबली पाण्डेय, प्रो. जी. सी. झाला, प्रो. चट्टोपाध्याय प्रभृति विद्वानों ने कालिदास का समय ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी माना है। कालिदास संस्कृत के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। विद्वानों ने इन्हें कविता कामिनी का विलास बताया है। भारतीय एवं पाश्चात्य विद्वानों ने इनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है। उनका काव्य-सौष्ठव, नाट्यकला का लालित्य और गीतिकाव्य की सरसता सर्वथा श्लाघ्य है। उनकी कविता वनिता वैसी ही सरस एवं सुन्दर है जैसे कि शाकुन्तलम् की नायिका शकुन्तला है। शकुन्तला के सदृश उनकी कविता सुन्दरी भी किसी दूसरे कवि के द्वारा सम्पर्कित न होने के कारण अनाघ्रात प्रसून, अलून किसलय अनाविद्ध रत्न, अनास्वादित नवीन मधुरस के सदृश हैं जिसे कोई सुकृती बड़े ही सुकृत से प्राप्त कर सकता है। डॉ0 हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कालिदास को 'राष्ट्रीय कवि की पदवी से विभूषित किया है। वस्तुतः उनके काव्यो में राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना मुखरित हो रही है। वे भारतीयता के सच्चे पुजारी हैं। उनके काव्यरत्न भारतीयता का प्रतिनिधित्व करते हुए पाये जाते हैं।

1. निषादविद्वाण्डजदर्शनोत्थः श्लोकत्वमापद्यत यस्य शोकः। रघुवंश - 14/27
2. अत स ब्रह्मर्षिरेकदा माध्यन्दिनसवनाय नदीं तमसामनुप्रपन्नः।
तत्र युग्मचारिणोः क्रौञ्चयोरेक व्याधेन विध्यमानं ददर्श।
आकस्मिक प्रत्यवभासा च देवीं वाचमव्यक्तानुष्टुन छन्दसा परिणतामभ्युदैरयत्।

उत्तररामचरित - 2/4 श्लोक के -  हाद का पद्य
3. काव्यस्यात्मा स एवार्थस्तथा चादिकवेः पुरा।
क्रौञ्चद्वन्द्ववियोगोत्थः शोक. श्लोकत्वमागत।। 
ध्वन्यालोक - 1/5

महाकवि कालिदास ने अपने काव्य में पावन भारतभूमि का भव्य वर्णन, प्रकृति सुन्दरी का चारुचित्रण, मानव-मानस की सूक्ष्मतम अनुभूतियों का सुन्दर अभिव्यञ्जन और श्रृंगार आदि रसों का सुमधुर संयोजन अत्यन्त ही आकर्षक रूप में प्रस्तुत किया है। उनके द्वारा प्रयुक्त अलङ्कार कविता को श्रेष्ठता प्रदान करते हैं। उपभा तो उनकी सच्ची सहचरी बन गयी है। छन्दो का प्रयोग उसकी आह्लादकता को संगुम्फित कर रहा है जिससे वह मन्दस्मिता होती हुई सुशोभित हो रही है। प्रसाद, माधुर्य एवं वैदर्भी की त्रिवेणी से संयुक्त होती हुई ध्वन्यात्मकता उनकी सरस काव्यकला में चमत्कार उत्पन्न कर देती है। उदाहरण के लिए निम्नलिखित पद्य को देखिए-
'अनाघात पुष्पं किसलयमलून कर रुहै-
रनाविद्धं रत्ने मधु नवमनास्वादितरसम्।
अखण्डं पुण्यानां फलमिव च तद्रूपनघं
न जाने भोक्तारं कमिह समुपस्थास्यति विधिः॥'

उनके प्रकृति वर्णनों में मानवीकरण एवं मानवीय भावनाओं का सुन्दर समन्वय देखने को मिलता है। कहीं-कहीं तो प्राकृतिक उपादान मानवीय सौन्दर्य वर्णन में उपकरण के रूप में प्रस्तुत हुए हैं। शकुन्तला के सहज सौन्दर्य को कवि इस प्रकार प्रकट करता है-
"अधरः किसलयरागः कोमलविटपानुकारिणौ बाहू।
कुसुमीमव लोभनीयं यौवनमङ्गेषु सन्नद्धम्॥'

कालिदास के पश्चात् अश्वघोष, मातृचेट, आर्यशूर आदि बौद्ध कवि आते हैं। इन लोगों ने कालिदास की अलंकृत सुकुमार काव्यशैली का ही अनुसरण किया है किन्तु बौद्ध कवि होने के कारण इनके काव्यों में काव्यकला की अपेक्षा धर्म एवं दर्शन की अधिकता दिखाई देती है। तथापि उनके काव्य की सरसता, सुन्दरता एवं स्वाभाविकता सराहनीय है। सौन्दरनन्द के उपमा अलंकार से युक्त एक उदाहरण को देखिए -
"तं गौरवं बुद्धगतं चकर्ष भार्यानुरागः पुनराचकर्ष।
सोऽनिश्चयान्नापि ययौ न तस्थौ तरंस्तरङ्गेष्विव राजहंसः॥'

बौद्ध रचनाओं के अतिरिक्त महाकवि भर्तुमेण्ठ का अनुपलब्ध 'हयग्रीववध' महाकाव्य इसी काल की रचना मानी गयी है। इसके पश्चात् क्रमशः काव्यशैली का विकास हुआ। कवियों में पाण्डित्य प्रदर्शन की प्रवृत्ति दृष्टिगोचर होती है। कोई अलङ्कारो के प्रयोग में प्रवीणता दिखाता है तो कोई शब्दाडम्बर में ही उलझा रहता है, कोई अपने व्याकरण वैदुष्य को दिखलाता है तो कोई दार्शनिकता के चक्कर में ही फँसकर कविता की स्वाभाविकता एवं सुन्दरता को विनष्ट कर देता है। फलस्वरूप कालिदास सदृश काव्यविलास इस समय नहीं रह गया है।

इस परम्परा के प्रथम कवि भारवि हैं। यद्यपि ये कालिदास की काव्यशैली से प्रभावित हैं किन्तु वैदुष्य का मोह इन्हें प्रत्येक स्थान पर अपनी ओर आकर्षित करता है। अर्थ की गम्भीरता, स्पष्टार्थता तथा साभिप्राय व्यञ्जनापूर्ण मुहावरों से युक्त भारवि की भाषा है। उन्होंने स्वयं ही काव्यशैली का वर्णन इस प्रकार किया है -
1. सुबन्धौ भक्तिर्न क इह रघुकारे न रमते.
धुतिर्दाक्षीपुत्रे हरति हरिचन्द्रोऽपि हृदयम्।
विशुद्वोक्ति शूर प्रकृतिमधुरा भारविगिर
स्तथाप्यन्तर्मोद कमपि भवभूतिर्वितनुते॥

2. सर्वे सर्वपदादेशा दाक्षीपुत्रस्य पाणिनेः। - महाभाष्य 1/102

'स्फुटता न पदैरपाकृता न च न स्वीकृतमर्थगौरवम्।
रचिता पृथगर्थता गिरा न च सामर्थ्यमपोहितं क्वचित्॥'

भारवि ने जहाँ एक ओर सरल, सुबोध एवं अलंकृत सुकुमार शैली का आश्रय लिया है वहीं दूसरी और सर्वतोभद्र, यमक एक वर्ण आदि की कृत्रिम काव्य रचना की प्रवृत्ति से वे वंचित नहीं रह पाते हैं। प्रस्तुत श्लोक में भारवि ने एक ही व्यञ्जन का प्रयोग कर अपनी विद्वत्ता प्रदर्शित की है - 
"न नोननुन्नो नुनन्नोनो नाना नानानना ननु।
नुन्नोऽनुन्नो ननुन्नेनो नानेना नुन्ननुन्नुन्॥'

इसके पश्चात् महाकवि भट्टि आते हैं। भट्टि का 'रावणवध' नामक महाकाव्य 'भट्टिकाव्य' के नाम से प्रसिद्ध है। यह काव्य वस्तुतः व्याकरणप्रधान है। व्याकरण की प्रधानता होने के कारण इसमें काव्यगत सुन्दरता एवं सरसता का अभाव है। इस सन्दर्भ में उन्होने स्वयं ही कहा है -
"दीपतुल्यः प्रबन्धोऽयं शब्दलक्षणचक्षुषाम्।
हस्तामर्ष इवान्धानां भवेद् व्याकरणादृते॥'

महाकवि कुमारदास का 'जानकीहरण' कालिदास के रघुवंश से प्रभावित है। इनके काव्य में सरसता एवं मधुरता के दर्शन होते हैं। उदाहरण के लिए निम्नलिखित श्लोक को देखिए-
"दृष्टौ हतं मन्मथबाणपातैः शक्यं विधातुं न निमील्य चक्षुः।
अरु विधात्रा न कृतौ कथं तावित्यास तस्यां सुमतेर्वितर्कः॥ '

अर्थात् विद्वान् व्यक्ति भी इस विषय में वितर्क करने लगता है कि ब्रह्मा ने दशरथ की पत्नी की सुन्दर सुडौल जघनों का निर्माण किस प्रकार किया होगा? क्योंकि यदि वे जघनों को देखते हुए बनाते तो कामदेव के बाणों से घायल हो जाते और आँखे बन्द करके जघनों की रचना नहीं सकती थी।

महाकवि माघ अपनी एकमात्र रचना 'शिशुपालवध नामक महाकाव्य से संस्कृत जगत् में प्रतिष्ठित हुए हैं। अलङ्कार सौष्ठव, अर्थगाम्भीर्य एवं पदलालित्य इन तीनों ही विशेषताओं का सुन्दर समावेश होने के कारण इसे सर्वाङ्गपूर्ण महाकाव्य माना जाता है-
"उपमा कालिदासस्य भारवेरर्थगौरवम्।
दण्डिनः पदलालित्यं माघे सन्ति त्रयो गुणाः॥'

महाकवि माघ ने अपने सम्पूर्ण महाकाव्य में नूतन मौलिकता, कल्पना की उर्वरता, प्रौढोक्ति की विशेषता एवं सुन्दर सरसता को उद्धृत किया है। किन्तु कहीं-कहीं वैदुष्य प्रदर्शन के कारण कविता में सरसता नहीं उत्पन्न हो पायी है। उनका शब्दाडम्बर अत्यन्त प्रसिद्ध है।

महाकवि माघ के विषय में यह उक्ति प्रचलित है -
"नवसर्गगते माघे नवशब्दो न विद्यते।'

महाकवि के निम्नलिखित श्लोक से प्रभावित होकर उन्हें 'घण्टामाघ' की उपाधि से विभूषित किया गया है -
"उदयति विततोर्ध्वरश्मिरज्जा
वहिमरुचौ हिमधाम्नि याति चास्तम्।
वहति गिरिरयं विलम्बिघण्टा
द्वय परिवारितवारणेन्द्रलीलाम्॥"

रत्नाकर का हरविजय, हरिश्चन्द्र का धर्मशर्माभ्युदय, पद्मगुप्त का नवसाहसाडूचरित, विल्हण का विक्रमाङ्कदेवचरित तथा कल्हण की राजतरङ्गिणी संस्कृत के प्रसिद्ध ग्रन्थ रत्न हैं।

महाकवि माघ के पश्चात् "नैषधीयचरित के प्रणेता श्रीहर्ष संस्कृत काव्य प्रणेताओं की प्रतिष्ठित परम्परा में आते हैं। भारतीय समालोचक संस्कृत काव्य परम्परा में 'नैषधीयचरित' को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। अतएव कहा गया है -
"तावद्भा भारवेर्भाति यावन्माघस्य नोदयः।
उदिते नैषधे काव्ये क्च माघः क्व च भारविः॥

नैषधीयचरित की कोमलकान्त पदावली, सुन्दर शब्दचयन, भावभङ्गिमायुक्त भाषासुन्दरी, सरस एवं रमणीय रसधारा तथा संगीतमयी सुमधुर छन्दो-योजना को देखकर विद्वजन मुक्त कण्ठ से प्रशंसा करने लगे-
"नैषधे पदलालित्यम् '

वास्तव में यह युग संस्कृत साहित्य का लब्धप्रतिष्ठ युग रहा है। इसमें भारवि से लेकर श्रीहर्ष तक सुप्रसिद्ध महाकाव्य, खण्डकाव्य, मुक्तक, कथा, आख्यायिका, नाटक आदि विभिन्न काव्य विधाओं का सम्यक् रूप से विकास हुआ है। इसी युग में भारवि, माघ, कुमारदास, भट्टि, जयदेव, विल्हण, सुबन्धु, दण्डी, बाण, भवभूति, क्षेमेन्द्र जैसे कविरत्न अपनी दिव्य वाणी के द्वारा सुरभारती की अनवरत सेवा करते है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि संस्कृत की दिव्य काव्यधारा अनादिकाल से प्रवाहित होती हुई आज भी सहृदयों को रससिक्त करती हुई अविछिन्न रूप में प्रवाहित होती जा रही है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भारतीय दर्शन एवं उसके भेद का परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- भूगोल एवं खगोल विषयों का अन्तः सम्बन्ध बताते हुए, इसके क्रमिक विकास पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- भारत का सभ्यता सम्बन्धी एक लम्बा इतिहास रहा है, इस सन्दर्भ में विज्ञान, गणित और चिकित्सा के क्षेत्र में प्राचीन भारत के महत्वपूर्ण योगदानों पर प्रकाश डालिए।
  4. प्रश्न- निम्नलिखित आचार्यों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये - 1. कौटिल्य (चाणक्य), 2. आर्यभट्ट, 3. वाराहमिहिर, 4. ब्रह्मगुप्त, 5. कालिदास, 6. धन्वन्तरि, 7. भाष्कराचार्य।
  5. प्रश्न- ज्योतिष तथा वास्तु शास्त्र का संक्षिप्त परिचय देते हुए दोनों शास्त्रों के परस्पर सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- 'योग' के शाब्दिक अर्थ को स्पष्ट करते हुए, योग सम्बन्धी प्राचीन परिभाषाओं पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- 'आयुर्वेद' पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  8. प्रश्न- कौटिलीय अर्थशास्त्र लोक-व्यवहार, राजनीति तथा दण्ड-विधान सम्बन्धी ज्ञान का व्यावहारिक चित्रण है, स्पष्ट कीजिए।
  9. प्रश्न- प्राचीन भारतीय संगीत के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  10. प्रश्न- आस्तिक एवं नास्तिक भारतीय दर्शनों के नाम लिखिये।
  11. प्रश्न- भारतीय षड् दर्शनों के नाम व उनके प्रवर्तक आचार्यों के नाम लिखिये।
  12. प्रश्न- मानचित्र कला के विकास में योगदान देने वाले प्राचीन भूगोलवेत्ताओं के नाम बताइये।
  13. प्रश्न- भूगोल एवं खगोल शब्दों का प्रयोग सर्वप्रथम कहाँ मिलता है?
  14. प्रश्न- ऋतुओं का सर्वप्रथम ज्ञान कहाँ से प्राप्त होता है?
  15. प्रश्न- पौराणिक युग में भारतीय विद्वान ने विश्व को सात द्वीपों में विभाजित किया था, जिनका वास्तविक स्थान क्या है?
  16. प्रश्न- न्यूटन से कई शताब्दी पूर्व किसने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त बताया?
  17. प्रश्न- प्राचीन भारतीय गणितज्ञ कौन हैं, जिसने रेखागणित सम्बन्धी सिद्धान्तों को प्रतिपादित किया?
  18. प्रश्न- गणित के त्रिकोणमिति (Trigonometry) के सिद्धान्त सूत्र को प्रतिपादित करने वाले प्रथम गणितज्ञ का नाम बताइये।
  19. प्रश्न- 'गणित सार संग्रह' के लेखक कौन हैं?
  20. प्रश्न- 'गणित कौमुदी' तथा 'बीजगणित वातांश' ग्रन्थों के लेखक कौन हैं?
  21. प्रश्न- 'ज्योतिष के स्वरूप का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए।
  22. प्रश्न- वास्तुशास्त्र का ज्योतिष से क्या संबंध है?
  23. प्रश्न- त्रिस्कन्ध' किसे कहा जाता है?
  24. प्रश्न- 'योगदर्शन' के प्रणेता कौन हैं? योगदर्शन के आधार ग्रन्थ का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  25. प्रश्न- क्रियायोग' किसे कहते हैं?
  26. प्रश्न- 'अष्टाङ्ग योग' क्या है? संक्षेप में बताइये।
  27. प्रश्न- 'अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस' पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  28. प्रश्न- आयुर्वेद का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  29. प्रश्न- आयुर्वेद के मौलिक सिद्धान्तों के नाम बताइये।
  30. प्रश्न- 'कौटिलीय अर्थशास्त्र' का सामान्य परिचय दीजिए।
  31. प्रश्न- काव्य क्या है? अर्थात् काव्य की परिभाषा लिखिये।
  32. प्रश्न- काव्य का ऐतिहासिक परिचय दीजिए।
  33. प्रश्न- संस्कृत व्याकरण का इतिहास क्या है?
  34. प्रश्न- संस्कृत शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई? एवं संस्कृत व्याकरण के ग्रन्थ और उनके रचनाकारों के नाम बताइये।
  35. प्रश्न- कालिदास की जन्मभूमि एवं निवास स्थान का परिचय दीजिए।
  36. प्रश्न- महाकवि कालिदास की कृतियों का उल्लेख कर महाकाव्यों पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- महाकवि कालिदास की काव्य शैली पर प्रकाश डालिए।
  38. प्रश्न- कालिदास से पूर्वकाल में संस्कृत काव्य के विकास पर लेख लिखिए।
  39. प्रश्न- महाकवि कालिदास की काव्यगत विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  40. प्रश्न- महाकवि कालिदास के पश्चात् होने वाले संस्कृत काव्य के विकास की विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- महर्षि वाल्मीकि का संक्षिप्त परिचय देते हुए यह भी बताइये कि उन्होंने रामायण की रचना कब की थी?
  42. प्रश्न- क्या आप इस तथ्य से सहमत हैं कि माघ में उपमा का सौन्दर्य, अर्थगौरव का वैशिष्ट्य तथा पदलालित्य का चमत्कार विद्यमान है?
  43. प्रश्न- महर्षि वेदव्यास के सम्पूर्ण जीवन पर प्रकाश डालते हुए, उनकी कृतियों के नाम बताइये।
  44. प्रश्न- आचार्य पाणिनि का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  45. प्रश्न- आचार्य पाणिनि ने व्याकरण को किस प्रकार तथा क्यों व्यवस्थित किया?
  46. प्रश्न- आचार्य कात्यायन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  47. प्रश्न- आचार्य पतञ्जलि का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  48. प्रश्न- आदिकवि महर्षि बाल्मीकि विरचित आदि काव्य रामायण का परिचय दीजिए।
  49. प्रश्न- श्री हर्ष की अलंकार छन्द योजना का निरूपण कर नैषधं विद्ध दोषधम् की समीक्षा कीजिए।
  50. प्रश्न- महर्षि वेदव्यास रचित महाभारत का परिचय दीजिए।
  51. प्रश्न- महाभारत के रचयिता का संक्षिप्त परिचय देकर रचनाकाल बतलाइये।
  52. प्रश्न- महाकवि भारवि के व्यक्तित्व एवं कर्त्तव्य पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- महाकवि हर्ष का परिचय लिखिए।
  54. प्रश्न- महाकवि भारवि की भाषा शैली अलंकार एवं छन्दों योजना पर प्रकाश डालिए।
  55. प्रश्न- 'भारवेर्थगौरवम्' की समीक्षा कीजिए।
  56. प्रश्न- रामायण के रचयिता कौन थे तथा उन्होंने इसकी रचना क्यों की?
  57. प्रश्न- रामायण का मुख्य रस क्या है?
  58. प्रश्न- वाल्मीकि रामायण में कितने काण्ड हैं? प्रत्येक काण्ड का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  59. प्रश्न- "रामायण एक आर्दश काव्य है।' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  60. प्रश्न- क्या महाभारत काव्य है?
  61. प्रश्न- महाभारत का मुख्य रस क्या है?
  62. प्रश्न- क्या महाभारत विश्वसाहित्य का विशालतम ग्रन्थ है?
  63. प्रश्न- 'वृहत्त्रयी' से आप क्या समझते हैं?
  64. प्रश्न- भारवि का 'आतपत्र भारवि' नाम क्यों पड़ा?
  65. प्रश्न- 'शठे शाठ्यं समाचरेत्' तथा 'आर्जवं कुटिलेषु न नीति:' भारवि के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  66. प्रश्न- 'महाकवि माघ चित्रकाव्य लिखने में सिद्धहस्त थे' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  67. प्रश्न- 'महाकवि माघ भक्तकवि है' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  68. प्रश्न- श्री हर्ष कौन थे?
  69. प्रश्न- श्री हर्ष की रचनाओं का परिचय दीजिए।
  70. प्रश्न- 'श्री हर्ष कवि से बढ़कर दार्शनिक थे।' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  71. प्रश्न- श्री हर्ष की 'परिहास-प्रियता' का एक उदाहरण दीजिये।
  72. प्रश्न- नैषध महाकाव्य में प्रमुख रस क्या है?
  73. प्रश्न- "श्री हर्ष वैदर्भी रीति के कवि हैं" इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  74. प्रश्न- 'काश्यां मरणान्मुक्तिः' श्री हर्ष ने इस कथन का समर्थन किया है। उदाहरण देकर इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  75. प्रश्न- 'नैषध विद्वदौषधम्' यह कथन किससे सम्बध्य है तथा इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  76. प्रश्न- 'त्रिमुनि' किसे कहते हैं? संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  77. प्रश्न- महाकवि भारवि का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी काव्य प्रतिभा का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- भारवि का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  79. प्रश्न- किरातार्जुनीयम् महाकाव्य के प्रथम सर्ग का संक्षिप्त कथानक प्रस्तुत कीजिए।
  80. प्रश्न- 'भारवेरर्थगौरवम्' पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
  81. प्रश्न- भारवि के महाकाव्य का नामोल्लेख करते हुए उसका अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- किरातार्जुनीयम् की कथावस्तु एवं चरित्र-चित्रण पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- किरातार्जुनीयम् की रस योजना पर प्रकाश डालिए।
  84. प्रश्न- महाकवि भवभूति का परिचय लिखिए।
  85. प्रश्न- महाकवि भवभूति की नाट्य-कला की समीक्षा कीजिए।
  86. प्रश्न- 'वरं विरोधोऽपि समं महात्माभिः' सूक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
  87. प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए ।
  88. प्रश्न- कालिदास की जन्मभूमि एवं निवास स्थान का परिचय दीजिए।
  89. प्रश्न- महाकवि कालिदास की कृतियों का उल्लेख कर महाकाव्यों पर प्रकाश डालिए।
  90. प्रश्न- महाकवि कालिदास की काव्य शैली पर प्रकाश डालिए।
  91. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि कालिदास संस्कृत के श्रेष्ठतम कवि हैं।
  92. प्रश्न- उपमा अलंकार के लिए कौन सा कवि प्रसिद्ध है।
  93. प्रश्न- अपनी पाठ्य-पुस्तक में विद्यमान 'कुमारसम्भव' का कथासार प्रस्तुत कीजिए।
  94. प्रश्न- कालिदास की भाषा की समीक्षा कीजिए।
  95. प्रश्न- कालिदास की रसयोजना पर प्रकाश डालिए।
  96. प्रश्न- कालिदास की सौन्दर्य योजना पर प्रकाश डालिए।
  97. प्रश्न- 'उपमा कालिदासस्य' की समीक्षा कीजिए।
  98. प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए -
  99. प्रश्न- महाकवि भर्तृहरि के जीवन-परिचय पर प्रकाश डालिए।
  100. प्रश्न- 'नीतिशतक' में लोकव्यवहार की शिक्षा किस प्रकार दी गयी है? लिखिए।
  101. प्रश्न- महाकवि भर्तृहरि की कृतियों पर प्रकाश डालिए।
  102. प्रश्न- भर्तृहरि ने कितने शतकों की रचना की? उनका वर्ण्य विषय क्या है?
  103. प्रश्न- महाकवि भर्तृहरि की भाषा शैली पर प्रकाश डालिए।
  104. प्रश्न- नीतिशतक का मूल्यांकन कीजिए।
  105. प्रश्न- धीर पुरुष एवं छुद्र पुरुष के लिए भर्तृहरि ने किन उपमाओं का प्रयोग किया है। उनकी सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
  106. प्रश्न- विद्या प्रशंसा सम्बन्धी नीतिशतकम् श्लोकों का उदाहरण देते हुए विद्या के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
  107. प्रश्न- भर्तृहरि की काव्य रचना का प्रयोजन की विवेचना कीजिए।
  108. प्रश्न- भर्तृहरि के काव्य सौष्ठव पर एक निबन्ध लिखिए।
  109. प्रश्न- 'लघुसिद्धान्तकौमुदी' का विग्रह कर अर्थ बतलाइये।
  110. प्रश्न- 'संज्ञा प्रकरण किसे कहते हैं?
  111. प्रश्न- माहेश्वर सूत्र या अक्षरसाम्नाय लिखिये।
  112. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए - इति माहेश्वराणि सूत्राणि, इत्संज्ञा, ऋरषाणां मूर्धा, हलन्त्यम् ,अदर्शनं लोपः आदि
  113. प्रश्न- सन्धि किसे कहते हैं?
  114. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए।
  115. प्रश्न- हल सन्धि किसे कहते हैं?
  116. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए।
  117. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए।

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